लेखनी कहानी -22-Jun-2022 रात्रि चौपाल
भाग 1
अंशुल सक्सेना 2018 बैच का IAS अफसर है । पहली बार कलेक्टर लगाया था सरकार ने उसे । IAS सर्विस का ख्वाब होती है कलेक्टर की पोस्टिंग । पहली बार कलेक्टर बनने का मतलब होता है आसमान में बैठकर खयाली घोड़े दौड़ाना । न जाने कितने सपने, अरमान और योजनाएं भरी होती हैं एक युवा IAS के दिमाग में । ऐसा महसूस होता है कि दुनिया में बस एक वही तो "दिमागधारी" है बाकी सब तो सिर में भूसा भरे हुए घूम रहे हैं धरती पर ।
तो अंशुल ने ठान लिया कि वह अपना नाम लोगों के दिलों में कुछ इस तरह से लिखवा कर जाएगा कि लोग सदियों तक "कलेक्टर साहब" की जय जयकार करते रहेंगे । इतिहास के सुनहरे पृष्ठों में उसका नाम लिखा जाएगा और उसकी जिंदगी पर भी कोई "बायोपिक" बनेगी जैसे धोनी पर बनी थी । और भी अनंत ख्वाहिशें होती हैं नौकरशाही की । अंशुल को कुछ न कुछ तो बड़ा करना था जिससे वह बड़े अधिकारियों , नेताओं की निगाहों में चढ सके और मीडिया में सुर्खियां बटोर सके ।
लाल बहादुर शास्त्री प्रशिक्षण केंद्र, मसूरी में जब इनको प्रशिक्षण दिया जाता है तब एक बात बड़ी अच्छी तरह से समझाई जाती है कि वे इस बात का हमेशा ध्यान में रखें कि वे IAS हैं । IAS मतलब I am super . यानि , एक IAS को हरदम अपने आप को सुपर समझना चाहिए । जब भी कोई व्यक्ति उसके सामने आए , वह चाहे जो भी कोई हो , कितना ही बड़ा क्यों न हो, उसे यह महसूस कराना चाहिए कि वे IAS हैं । मतलब सुपर हैं । उनसे ऊपर कोई भी नहीं है । ना मंत्री ना अफसर । बेचारी जनता की तो औकात ही क्या है ?
इसके अलावा इन्हें एक बात और पढाई जाती है घुट्टी की तरह । PCS को बिल्कुल मुंह नहीं लगाना है , किसी भी कीमत पर नहीं । इन्हें यह समझाया जाता है कि PCS अफसर सबसे खतरनाक होते हैं । इसलिए इनसे एक निश्चित दूरी बनाये हुए रखना है । और यह भी कहा जाता है कि SDM और ADM को हमेशा लड़ाकर रखना है । इन अधिकारियों को एक नहीं होने देना है । जिस दिन ये एक हो गये , समझो उसी दिन " IAS कैडर" भट्टे में बैठ जाएगा । इसलिए इनको सिखाया जाता है कि ADM से ज्यादा SDM को भाव दो और SDM से ज्यादा तहसीलदार को । इस तरह से ये PCS आपस में लड़ पड़ेंगे और अपनी बादशाहत बरकरार रहेगी । ये लोग इन्हीं फार्मूला पर चलते हैं अक्सर ।
अंशुल की पोस्टिंग हुई थी करौली जिले में । राजस्थान का सबसे पिछड़ा जिला है करौली । एक से बढकर एक महान आत्माएं निवास करती हैं करौली में । यहां पर क्या नहीं है ? धार्मिक झगड़े , जातिगत वर्चस्व की लड़ाई , चम्बल के बीहड़ों में डकैतों का आतंक , बजरी माफिया की खुलेआम गुंडागर्दी, मिलावटी खाद्य पदार्थों का स्वर्ग । अशिक्षा , चिकित्सा सुविधाओं का अभाव , शराब के प्रति दीवानगी , सामाजिक कुप्रथाएं, जादू, टोना, भूत प्रेत सब मिलता है यहां पर । स्वार्थ, धोखा , धूर्तता , मक्कारी , दोगलापन बिखरा पड़ा है चारों ओर । जिसको जितना समेटना हो, समेट सकता है यहां पर ।
ऐसे जिले का कायाकल्प करने के लिए ही तो सरकार ने चुना था अंशुल सक्सेना को । अब उसे कर के दिखाना था । अपनी सारी ब्द्धिमत्ता, कुशलता और प्रबंधकीय क्षमता का प्रदर्शन करना था उसे । नेतृत्व क्षमता की कसौटी पर कसा जाना था उसे इस जिले में ।
अंशुल ने पद संभालते ही खूब "फूं फां " की । कलेक्ट्रेट में लगे सब बाबुओं को हटाकर तहसीलों और SDM ऑफिस में लगा दिया और विभिन्न तहसीलों से बाबू हटाकर कलेक्ट्रेट में लगा दिये । खूब हाय तौबा मची पूरे जिले में । कर्मचारियों से लेकर नेता तक नाराज हो गए थे , कलेक्टर साहब से । मगर अंशुल सक्सेना को इससे क्या फर्क पड़ने वाला था ? वह तो समझ रहा था कि ऐसा करने से उसने कलेक्ट्रेट को मक्बाकार बाबुओं से "आजाद" करवा लिया था । मगर बाबू तो बाबू हैं , इतनी आसानी से कैसे हार मान लें ? तो बाबुओं ने कलेक्टर साहब के खिलाफ एक मोर्च खोल दिया ।
यही हाल पटवारियों का था । या यों कहें कि पटवारियों का हाल तो और भी ज्यादा खराब थे । "नजराना, फसलाना, शुक्राना " के बिना कोई काम नहीं होता था । कलेक्टर साहब पर ईमानदारी का भूत सवार था इसलिए "सारे घर के बदल दूंगा" की तर्ज पर सब पटवारियों को इधर उधर फेंक दिया । पटवारियों और गिरदावरों में आंधी तूफान आ गया । सब लोग अपने अपने MLA साहब की ड्यौढी पर हाजिरी लगाने लगे ।
अपने अपने विधान सभा क्षेत्र का "मुख्यमंत्री" होता है एक विधायक । आज के जमाने का महाराजा । उसकी मर्जी के बिना क्षेत्र में पत्ता भी नहीं खड़कता है । बेचारे पत्तों को खड़कने के लिए "विधायक" जी की अनुमति लेनी पड़ती है । अब आप लोग तो जानते ही हैं कि सरकार में किसी चीज की "अनुमति" ऐसे ही मिल जाती है क्या ? अरे, मंदिर में कोई खाली हाथ जाता है क्या ? पत्रम् पुष्पम् चढाए बिना "प्रसाद" मिलता है क्या कभी ? तो बेचारे पत्ते ? अब कहां से लाएं भेंट पूजा की सामग्री । इसलिए बिना "खड़के" ही खड़े हुए हैं बेचारे ।
मजे की बात देखिए कि सरकार ने एक फरमान जारी कर दिया है कि हर स्थानांतरण के लिए विधायक जी की "डिजायर" अनिवार्य है । मतलब किसी भी कर्मचारी को अगर कहीं स्थानांतरण करवाना है तो उस जगह के विधायक जी की NOC चाहिए । बिना "डिजायर" के कोई स्थानांतरण नहीं हो सकेगा । और अगर वहां काम करते करते दो साल से ऊपर का समय हो गया है और स्थानांतरण नहीं चाहिए तो भी विधायक जी की "डिजायर" अनिवार्य है । यह "डिजायर" कुछ कुछ वैसी ही है जैसे रोम में चर्च ने स्वर्ग जाने के "प्रमाण पत्र" बांटे थे । तो विधायक जी के घर पर उसी हल्के का पटवारी भी हाजिरी लगा रहा है, तहसीलदार भी और SDM साहब भी । बड़ा मजेदार सीन होता है ये जब "शेर" और बकरी एक साथ बैठे रहते हैं और विधायक जी की "हां में हां" मिलाते रहते हैं ।
इससे भी ज्यादा मजा तब आता है जब थानेदार, पुलिस उपाधीक्षक और अपराधी एक साथ विधायक जी के घर में बैठे रहते हैं । अपराधी विधायक जी के बगल वाले सोफे पर , थानेदार जी सामने पड़ी कुर्सी पर और उपाधीक्षक महोदय स्टूल पर बैठते हैं । तब अपराधी थानेदार और उपाधीक्षक को देखकर मूंछों पर ताव देता रहता है । थानेदार उपाधीक्षक को देखकर तिरस्कार वाली हंसी हंसकर उपाधीक्षक को चिढाता है और उपाधीक्षक बेशर्मी से खींसें निपोरते रहता है ।
जब विधायक जी आते हैं तो सबसे पहले अपराधी थानेदार और उपाधीक्षक की शिकायत करता है । विधायक जी अपराधी को पुचकार कर चुप करवाते हैं और थानेदार को एक जोरदार डांट मारते हैं । थानेदार को अपने बचाव में एक ही रास्ता नजर आता है , और वह यह कहकर कि "मैंने कुछ नहीं किया , उपाधीक्षक महोदय के आदेश पर ही किया है । इसलिए इन अपराधी महोदय का गुनहगार वह नहीं बल्कि उपाधीक्षक महोदय ही हैं" । ऐसा कहकर थानेदार उपाधीक्षक की ओर देखकर मंद मंद मुस्कुराते हुए मूंछों पर ताव देता रहता है और उपाधीक्षक अपनी "सफाई" ।
इसी तरह सभी इंजीनियर, डॉक्टर , मास्टर , सरपंच, ग्राम सेवक , प्रधान सब दरबारियों की तरह हाथ जोड़कर खड़े रहते हैं । महिला अधिकारियों और कर्मचारियों पर तो "विशेष कृपा" होती है विधायक जी की । यदि कोई महिला बहुत सुंदर है तो उस पर तो "तीनों लोक" न्यौछावर हो सकते हैं ।
शेष अगले अंक में
हरिशंकर गोयल "हरि"
22.6.22
shweta soni
25-Jul-2022 08:55 PM
Bahut achhi rachana
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Chetna swrnkar
19-Jul-2022 04:55 PM
👌👌👌
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NEELAM GUPTA
23-Jun-2022 07:32 PM
बहुत बढ़िया
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